बंद नसों को कैसे खोले:
बंद नसों की समस्या आजकल की जीवनशैली में एक आम परेशानी बन गई है, जो रक्त संचार में अवरोध उत्पन्न करती है और विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकती है। योग एक प्राचीन विधा है जो न केवल मानसिक शांति प्रदान करता है, बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य को भी सुधारता है। नियमित रूप से कुछ विशेष योगासनों का अभ्यास करके हम बंद नसों को खोलने और रक्त संचार को बेहतर बनाने में सहायता प्राप्त कर सकते है
त्रिकोणासन (Trikonasana)
त्रिकोणासन एक स्थायी मुद्रा है जो मांसपेशियों की टोनिंग और पैरों के रक्त संचार के लिए अत्यंत लाभकारी है। यह आसन छाती को खोलने में मदद करता है और फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाता है। इसके नियमित अभ्यास से शरीर के विभिन्न हिस्सों में रक्त प्रवाह में सुधार होता है, जिससे बंद नसों की समस्या कम हो सकती है।
करने की विधि:
सामान्य स्थिति में खड़े हो जाएं और पैरों को लगभग 3-4 फीट की दूरी पर फैलाएं।
दाहिने पैर को बाहर की ओर 90 डिग्री घुमाएं और बाएं पैर को थोड़ा अंदर की ओर मोड़ें।
दोनों हाथों को कंधे के स्तर पर सीधा फैलाएं।
सांस लेते हुए, दाहिनी ओर झुकें और दाहिने हाथ से दाहिने पैर या जमीन को स्पर्श करें, जबकि बायां हाथ सीधा ऊपर की ओर रहे।
इस स्थिति में कुछ सेकंड तक रहें और फिर वापस खड़े हो जाए
इसी प्रक्रिया को दूसरी ओर दोहराएं।
अधोमुख श्वानासन (Adho Mukha Svanasana)
अधोमुख श्वानासन, जिसे डाउनवर्ड फेसिंग डॉग पोज़ भी कहा जाता है, रक्त संचार को सुधारने में सहायक है। यह आसन गुरुत्वाकर्षण के माध्यम से सिर में रक्त प्रवाह को बढ़ाता है, जिससे नसों में अवरोध कम होता है। इसके अलावा, यह पैरों, हाथों और पीठ की मांसपेशियों को मजबूत करता है।
करने की विधि:
जमीन पर हाथों और घुटनों के बल आएं, जिससे आपका शरीर मेज के आकार का हो जाए।
सांस छोड़ते हुए, घुटनों को सीधा करें और कूल्हों को ऊपर उठाएं, जिससे शरीर एक उल्टे 'V' आकार में आ जाए।
सिर को नीचे रखें और आंखों को पैरों की ओर केंद्रित करें।
इस मुद्रा में कुछ सेकंड तक रहें और फिर घुटनों को मोड़कर प्रारंभिक स्थिति में लौटें
विपरीत करणी (Viparita Karani)
विपरीत करणी एक सरल लेकिन प्रभावी आसन है जो रक्त संचार को सुधारने और नसों के अवरोध को कम करने में मदद करता है। इस आसन के अभ्यास से पैरों और निचले शरीर में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जिससे सूजन और दर्द में राहत मिलती है।
करने की विधि:
दीवार के पास बैठें और धीरे-धीरे पीठ के बल लेट जाएं, पैरों को दीवार के सहारे ऊपर उठाएं।
हथेलियों को शरीर के बगल में रखें और आंखें बंद करके आराम करें।
इस स्थिति में 5-15 मिनट तक रहें, गहरी सांस लेते हुए।
धीरे-धीरे पैरों को नीचे लाकर प्रारंभिक स्थिति में लौटें।
सुप्त पादांगुष्ठासन (Supta Padangusthasana)
यह आसन नसों और मांसपेशियों को स्ट्रेच करने में मदद करता है, जिससे लचीलापन बढ़ता है और सूजन कम होती है। इसके नियमित अभ्यास से रक्त संचार में सुधार होता है और दबी हुई नसों को खोलने में सहायता मिलती है।
करने की विधि:
पीठ के बल लेट जाएं और पैरों को सीधा रखें।
दाहिने घुटने को मोड़ें और दाहिने पैर के अंगूठे को पकड़ें।
पैर को सीधा ऊपर की ओर उठाएं, जबकि बायां पैर जमीन पर सीधा रहे।
इस स्थिति में कुछ सेकंड तक रहें और फिर धीरे-धीरे पैर को नीचे लाएं।
इसी प्रक्रिया को दूसरे पैर के साथ दोहराएं।
भुजंगासन (Bhujangasana)
भुजंगासन, जिसे कोबरा पोज़ भी कहा जाता है, साइटिका नसों के दर्द को कम करने और पेट की चर्बी घटाने में लाभकारी है। यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है और रक्त संचार को बढ़ाता है।
करने की विधि:
पेट के बल लेट जाएं और हाथों को कंधों के नीचे रखें।
सांस लेते हुए, छाती और सिर को धीरे-धीरे ऊपर उठाएं, कोहनियों को मोड़ते हुए।
नाभि तक शरीर को उठाएं और सिर को ऊपर की ओर खींचें।
इस स्थिति में कुछ सेकंड तक रहे
सूर्य नमस्कार (Surya Namaskar)
सूर्य नमस्कार 12 आसनों का एक क्रम है जो पूरे शरीर की मांसपेशियों को सक्रिय करता है और रक्त संचार को बढ़ाता है। इसके नियमित अभ्यास से हृदय स्वास्थ्य में सुधार होता है और नसों में रक्त प्रवाह सुचारु होता है।
करने की विधि:
सीधे खड़े होकर हाथों को नमस्कार मुद्रा में जोड़ें।
सांस लेते हुए हाथों को ऊपर उठाएं और पीछे की ओर झुकें।
सांस छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें और हाथों से पैरों को स्पर्श करें।
सांस लेते हुए दाएं पैर को पीछे ले जाएं और सिर को ऊपर उठाएं।
बाएं पैर को भी पीछे ले जाकर प्लैंक स्थिति में आएं।
सांस छोड़ते हुए घुटनों, छाती और ठोड़ी को जमीन पर रखें।
सांस लेते हुए भुजंगासन में आएं।
सांस छोड़ते हुए अधोमुख श्वानासन में आएं।
सांस लेते हुए दाएं पैर को आगे लाएं और सिर ऊपर उठाएं।
बाएं पैर को भी आगे लाकर आगे की ओर झुकें।
सांस लेते हुए हाथों को ऊपर उठाएं और पीछे की ओर झुकें।
सांस छोड़ते हुए प्रारंभिक स्थिति में लौटें।
वीरभद्रासन I और II (Warrior I & II)
ये आसन पैरों की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं और रक्त संचार में सुधार लाते हैं। इनके अभ्यास से पैरों की नसों में रक्त प्रवाह बढ़ता है, जिससे अवरोध कम होता है।
करने की विधि:
सीधे खड़े होकर पैरों को 3-4 फीट की दूरी पर रखें।
दाएं पैर को 90 डिग्री बाहर की ओर घुमाएं और बाएं पैर को थोड़ा अंदर की ओर मोड़ें।
सांस लेते हुए दोनों हाथों को कंधे के स्तर पर उठाएं।
सांस छोड़ते हुए दाएं घुटने को मोड़ें, जिससे वह 90 डिग्री का कोण बनाए।
इस स्थिति में कुछ सेकंड तक रहें और फिर दूसरी ओर दोहराएं।
वज्रासन (Vajrasana)
वज्रासन पाचन में सुधार करता है और पेट के क्षेत्र में रक्त संचार बढ़ाता है। भोजन के बाद इस आसन का अभ्यास विशेष रूप से लाभकारी होता है।
करने की विधि:
घुटनों के बल बैठें और पैरों को पीछे की ओर फैलाएं, ताकि पैर के अंगूठे मिलें।
कूल्हों को एड़ी पर रखें और हाथों को घुटनों पर रखें।
रीढ़ सीधी रखें और आंखें बंद करके गहरी सांस लें।
इस स्थिति में 5-10 मिनट तक बैठें।
सेतुबंधासन (Setu Bandhasana)
यह आसन रीढ़, छाती और गर्दन को स्ट्रेच करता है, जिससे रक्त संचार में सुधार होता है और नसों में अवरोध कम होता है।
करने की विधि:
पीठ के बल लेटें और घुटनों को मोड़ें, पैरों को कूल्हों की चौड़ाई पर रखें।
हथेलियों को शरीर के बगल में रखें।
सांस लेते हुए कूल्हों को ऊपर उठाएं, छाती को ठोड़ी की ओर ले जाएं।
इस स्थिति में कुछ सेकंड तक रहें और फिर धीरे-धीरे वापस आएं।
मत्स्यासन (Matsyasana)
मत्स्यासन छाती और गले को खोलता है, जिससे रक्त संचार में सुधार होता है और थायरॉयड ग्रंथि को उत्तेजना मिलती है।
करने की विधि:
पीठ के बल लेटें और पैरों को सीधा रखें।
हाथों को जांघों के नीचे रखें, हथेलियां नीचे की ओर।
सांस लेते हुए छाती को ऊपर उठाएं और सिर को पीछे की ओर झुकाएं, ताकि सिर का शीर्ष जमीन को छूए।
इस स्थिति में कुछ सेकंड तक रहें और फिर धीरे-धीरे वापस आएं।
प्राणायाम (Breathing Exercises)
नाड़ी शोधन प्राणायाम (Alternate Nostril Breathing) और कपालभाति (Frontal Lobe Cleansing) जैसे श्वास अभ्यास रक्त संचार में सुधार करते हैं और नसों की सफाई में मदद करते हैं।
श्वासा योग
करने की विधि:
नाड़ी शोधन प्राणायाम:
सुखासन में बैठें और दाएं हाथ के अंगूठे से दाएं नासाछिद्र को बंद करें।
बाएं नासाछिद्र से सांस लें, फिर बाएं नासाछिद्र को बंद करें और दाएं से सांस लें।
निष्कर्ष:
इन योगासनों के नियमित अभ्यास से नसों की सेहत में सुधार होता है और रक्त संचार बेहतर होता है, जिससे बंद नसों की समस्या में राहत मिल सकती है। हालांकि, यदि समस्या गंभीर हो या लक्षण बने रहें, तो चिकित्सकीय सलाह लेना आवश्यक है।

